लेखनी से पूछता हु
कभी जो दर्द मिलता है
तुझे ही याद करते है
कभी जो वक़्त मिलता है
तुझ ही बात करते है
मेरे हर दर्द को
मेरी हर मुस्कुराहट को
अपना बना लेती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
कभी जो अन्तर्मन
कोलाहल करता है
मेरे हर अंकुर प्रश्नो को
तू हल तो हल होता है
हृदय की हर प्रश्नो का
तू सदगी से उत्तर देती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
जब कोई आशिक़ आशिक़ी में
खुद को रुलाता है
तुझे ही हर आशिक़ का
दर्द नज़र आता है
इतनी बेवफाई को
तू कैसे भूलती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
ना जान पाया अभी तक
कोई कवियों की दास्तां
वो अपने अश्क़ को
तुझसे ही करते बयां
उन हर शब्दो को
तू कैसे फिरोती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
तू तो सुनती
सबकी दास्तां
शब्द के वर्ग
करती सब बयां
ना जान सका कोई
तेरी आशिकी को
तू किस गम में
सब बया कर देती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है चल बता पूछते है आज
तुझसे तेरी आशिकी को
कैसे सब बयां करती है
इतनी सादगी से
मुझको लगता है तू
लेख को रो रो के लिखती है
सदियों पुरानी अपनी आशिकी को
तू याद करके आज भी रोती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू अपने अशुओ को
लिख लिख के पोछती है
रे लेखनी रे लेखनी......................
विकास सैनी श्रीमाली
(पथ की ओर अग्रसर)
कभी जो दर्द मिलता है
तुझे ही याद करते है
कभी जो वक़्त मिलता है
तुझ ही बात करते है
मेरे हर दर्द को
मेरी हर मुस्कुराहट को
अपना बना लेती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
कभी जो अन्तर्मन
कोलाहल करता है
मेरे हर अंकुर प्रश्नो को
तू हल तो हल होता है
हृदय की हर प्रश्नो का
तू सदगी से उत्तर देती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
जब कोई आशिक़ आशिक़ी में
खुद को रुलाता है
तुझे ही हर आशिक़ का
दर्द नज़र आता है
इतनी बेवफाई को
तू कैसे भूलती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
ना जान पाया अभी तक
कोई कवियों की दास्तां
वो अपने अश्क़ को
तुझसे ही करते बयां
उन हर शब्दो को
तू कैसे फिरोती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है
तू तो सुनती
सबकी दास्तां
शब्द के वर्ग
करती सब बयां
ना जान सका कोई
तेरी आशिकी को
तू किस गम में
सब बया कर देती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू बता ये कैसे लिख लेती है चल बता पूछते है आज
तुझसे तेरी आशिकी को
कैसे सब बयां करती है
इतनी सादगी से
मुझको लगता है तू
लेख को रो रो के लिखती है
सदियों पुरानी अपनी आशिकी को
तू याद करके आज भी रोती है
रे लेखनी रे लेखनी
तू अपने अशुओ को
लिख लिख के पोछती है
रे लेखनी रे लेखनी......................
विकास सैनी श्रीमाली
(पथ की ओर अग्रसर)
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